जनमत एक्सप्रेस। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व पूर्व मंत्री आबिद रज़ा ने आज मंगलवार को प्रेस क्लब अॉफ इंडिया नई दिल्ली कार्यालय पर प्रेसवार्ता के दौरान अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की है। साथ ही उन्होंने सपा के शीर्ष नेतृत्व पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी संर्घष के नाम पर फेसबुक, टि्वटर, फोटो सेशन तक रह गयी है। कई सालों से जनता के मुद्दे पर कोई धरना प्रदर्शन ना करना भी पार्टी को नुकसान पहुंचा रहा है। यही वजह है कोई भी चुनाव नजदीक आते ही पार्टी को गठबन्धन का सहारा लेना पड़ता है। जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है।
उन्होंने कहा कि क्या मुसलमान का काम अब पार्टी में सिर्फ पोस्टर लगाना, नारे लगाना, कुर्सिया बिछाना और टैण्ट बिछाना बचा है। आखिर मुसलमान कब तक पार्टी में टिकट का मोहताज रहेगा 14 फरवरी को हमने आपको P.D.A के मुताबिक राज्यसभा के तीन प्रत्याशियों में से एक प्रत्याशी मुसलमान बनाने की गुजारिश की थी, जिसको नजर अंदाज कर दिया गया। पार्टी के MY फेक्टर में (M) के साथ इंसाफ नहीं हो रहा है। जबकि प्रदेश का मुसलमान तमाम जुल्म और सितम के बावजूद आपके साथ खड़ा है। आने वाले MLC के चुनाव में कम से कम दो मुसलमानों को प्रत्याशी बनाना चाहिये। आगामी लोकसभा चुनाव में भी 20 प्रतिशत मुसलमान के हिसाब से पार्टी में टिकट दिये जाने चाहिये।
सन 2022 में विधानसभा के चुनाव में मुसलमान के सर्वाधिक वोट के बावजूद पार्टी जीत हासिल नहीं कर पाई थी। इसीलिए 2022 के चुनाव के बाद मुसलमान वोट का रूझान सपा से हट गया था, जिसका नतीजा 2023 के नगर निकाय चुनाव में देखने को मिला। मुसलमान का रूझान सपा से हटकर कांग्रेस की तरफ दिखाई देने लगा था। इसलिए मुसलमान की नाराजगी से बचने के लिए कांग्रेस से गठबंधन किया गया है। हमें गठबंधन से कोई ऐतराज नहीं है। पार्टी ने 2017 में भी कांग्रेस से गठबंधन किया था। कुल 47 सीटे पार्टी जीती थी।
गठबंधन सिर्फ मुसलमान वोट को रोकने के लिए किया जाता है। गठबंधन करके मुसलमान की अनदेखी पार्टी यह सोचकर और करती है कि “मुलसमान वोट अब जायेगा कहाँ।” गठबंधन करके पार्टी मुसलमान का वोट बिना मजबूत मुसलमान लीडर के लेना चाहती है। पार्टी को चापलूस व कमजोर मुसलमान नेता पसन्द आते हैं, जो दिल्ली और लखनऊ के आदेश के मुताबिक मुसलमान को सियासी जहनी गुलाम बनाकर उन्हें गुमराह कर सके। जो तेजतर्रार और मजबूत मुसलमान नेता जो मुसलमान की आवाज पार्टी में वेबाकी से उठाते है, उनका एक-एक करके सियासी कत्ल किया जा रहा है। जैसे:- सलीम शेरवानी साहब (पूर्व केन्द्रीय मंत्री) को तीसरी बार टिकट देने के नाम पर पार्टी की तरफ से धोखा मिला।
आजम खां साहब (पूर्व केबिनेट मंत्री) व उनके परिवार की पार्टी की तरफ से मदद महज एक दिखावा है। सन् 2017 में चुनाव के बाद आजम खां साहब का पार्टी के पोस्टर से फोटो हटा दिया गया, जिसकी लड़ाई हम और हमारे साथियों ने लड़ी थी। आजम खां साहब की मदद का असली सब हमसे बेहतर कोई नहीं जानता। अगर हम बोले तो बात बहुत दूर तलक जायेगी। सन् 2022 के विधानसभा के चुनाव में कई जिलों के मुसलमान नेता जो अपने क्षेत्र में मजबूत थे उनके टिकट को काटकर मुसलमानों की कयादत को कमजोर किया गया।
हम खासतौर से मुसलमान भाईयों से कहना चाहते हैं कि मुसलमान को नफरत की बुनियाद पर वोट देना बन्द कर देना चाहिए, किसी एक विशेष पार्टी का डर दिखाकर मुसलमान का चोट हासिल किया जाता है। इसलिए मुसलमान वोट का एहसान नहीं समझा जाता। “दुश्मन दुश्मनी निभाता है लेकिन दोस्त दोस्ती निभाने को तैयार नहीं।” प्रदेश में 2014, 2017, 2019, 2022, 2023 के चुनाव में मुसलमान लगातार पार्टी को वोट कर रहा है। लेकिन, दूरदर्शिता की कमी के कारण मुसलमान का वोट कामयाब नहीं हो पा रहा है। जिसका खामियाजा सिर्फ मुसलमान को उठाना पड़ रहा है।
आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी की कमजोर तैयारी की वजह से पार्टी और विपक्ष इतना सियासी कमजोर नजर आ रहा है, “कि नरेन्द्र मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे है”। सन् 2019 में भी सपा गठबंधन के बावजूद इतनी कमजोर लड़ रही थी कि जब स्व० मुलायम सिंह यादव को पार्टी के गठबंधन के बावजूद कमजोरी का एहसास हो गया था। इसीलिए नेता जी ने लोकसभा में नरेन्द्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने का आर्शीवाद दिया था।
नेता जी (स्व० मुलायम सिंह यादव जी) मुसलमानों को लीडर बनाते थे लेकिन, आज पार्टी में उनको साजिश करके उनके विकल्प बना उनके प्रतिद्वन्दी पैदा करके मजबूत मुसलमान नेताओं को खत्म करने का काम किया जा रहा है। नेता जी के वक्त में मुसलमान को अपने वोट की कीमत मिलती दिखाई पड़ती थी, पर आज मुसलमान वोट के बदले अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहा है।
आपने हमें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव बनाया इसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। शायद यह पद मुसलमानों को खुश करने के लिए दिया गया हो लेकिन हम मुसलमानों को सच्चाई से रूबरू कराना चाहते हैं। इस पद की हैसियत से हमें पार्टी में काम करने का ना कोई अधिकार था और ना ही कोई जिम्मेदारी दी गयी थी। यह पद सिर्फ हमें Visting Card या Paid छपवाने के लिए मात्र दिया गया था, यह एक खोखली ताकत है। इस पद पर रहकर पार्टी में मुसलमानों के बद से बदतर हालातों में सुधार कराने में हम कामयाबी हासिल नहीं कर पाये। आपसे जब भी मुसलमान की बात कही गयी तब आपका मूड़ उखड़ जाता है, आप मुसलमान का सच सुनना नहीं चाहते। अब मुसलमान व मुसलमान लीडर की पार्टी में नेताजी के वक्त जैसी इज्जत और कद्र नहीं बची, इसलिए हमारे दिल ने हमें यह महसूस करने पर मजबूर कर दिया कि हमें इस पद पर नहीं रहना चाहिए।
अगर आप मुसलमानों के खिलाफ हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते, मुसलमान वोट के साथ इंसाफ नहीं कर सकते तो आप हमारा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव से इस्तीफा मंजूर करने की मेहरबानी करें। उन्होंने कहा कि हमारा अगला सियासी कदम (मुसलमान, युवा, गरीब, किसान, दलित, पिछड़े, सर्वण) इंसान की हर जायज लडाई के लिए उठेगा।