जनमत एक्सप्रेस। शिक्षा की देवी राष्ट्र माता सावित्रीबाई फुले एक कवियित्री, समाज सुधारक और शिक्षिका थीं। उन्होंने महाराष्ट्र में अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ भारत में महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सावित्रीबाई फुले को भारत में नारीवादी आंदोलन की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने अहमदनगर में सिंथिया फर्रार के स्कूल में पढ़ाई की, जहां उन्होंने शिक्षक प्रशिक्षण के लिए एक कोर्स किया।
सावित्रीबाई फुले का जन्म और प्रारंभिक जीवन…
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में एक माली परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम खंडोजी नेवासे पाटिल था।1841 में लगभग नौ या दस साल की उम्र में सावित्रीबाई का विवाह ज्योतिराव फुले जिनकी उम्र लगभग 13 वर्ष रही होगी से हुआ था। सावित्रीबाई और ज्योतिराव की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने एक बच्चे को गोद लिया जिसका नाम यशवंत था। सावित्रीबाई फुले के पास कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं थी।ज्योतिराव ने सावित्रीबाई और अपनी चचेरी बहन सगुनाबाई शिरसागर को घर पर ही पढ़ाया। सावित्रीबाई फुले ने अपनी प्राथमिक शिक्षा ज्योतिराव से प्राप्त की, उन्होंने दो शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों में दाखिला लिया। जिनमें से पहला अहमदनगर में सिंथिया फर्रार द्वारा संचालित संस्थान में था और दूसरा पूना के एक सामान्य स्कूल में था। अपनी शिक्षा के साथ सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली महिला प्रिंसिपल और पहले किसान विद्यालय की संस्थापक थी।
सावित्रीबाई, ज्योतिराव फुले और सगुनाबाई ने भिडेवाडा में अपना स्कूल खोला। भिडेवाड़ा में रहने वाले तात्या साहेब भिड़े तीनों के काम से प्रेरित थे। गणित, भौतिकी और सामाजिक अध्ययन सभी भिडेवाड़ा में पारंपरिक पश्चिमी पाठ्यक्रम का हिस्सा थे। उस समय क्षेत्र के रूढ़िवादी स्थानीय लोग सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले की उपलब्धि के प्रति बहुत शत्रुतापूर्ण व्यवहार रखते थे। सावित्रीबाई अक्सर स्कूल में एक अतिरिक्त साड़ी ले जाती थीं क्योंकि उन्हें अपने रूढ़िवादी विरोधियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ता था जो उन पर पत्थर और गोबर फेंकते थे। 1839 में कट्टरपंथी, रूढ़िवादी लोगों ने ज्योतिराव के पिता को उन्हें घर से दूर करने की धमकी दी थी तब ज्योतिबा राव के पिता ने इस मुहिम को समाप्त करने या अपना घर छोड़ने का अनुरोध किया। क्योंकि सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास कर रहे थे। कट्टरपंथियों द्वारा इस मुहिम को पसंद नहीं किया गया। इसका चारों ओर विरोध होने लगा। सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा राव फुले अपने पिता के घर से चले गए और वह अपने दोस्त उस्मान शेख के परिवार के साथ रहने लगे। उस्मान उनके सबसे प्रिय दोस्त थे। यहां सावित्रीबाई की मुलाकात फातिमा शेख से हुई। उस्मान द्वारा अपनी बहन फातिमा शेख से शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में दाखिला लेने का अनुरोध किया और दोनों एक साथ सामान्य स्कूल में पढ़ने लगीं। इस प्रकार उन्होंने एक ही समय में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, वर्ष 1849 में फातिमा और सावित्रीबाई ने शेख के घर पर एक स्कूल की स्थापना की और अपनी मुहिम को आगे बढ़ाया।
सावित्रीबाई फुले की कविता और उनके कर्तव्य…
सावित्रीबाई फुले ने कविता और गद्य भी लिखा। उन्होंने “गो प्राप्त शिक्षा” नामक एक कविता जारी की जिसमें उन्होंने उन लोगों से शिक्षा प्राप्त करके खुद को मुक्त करने का आग्रह किया। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह जीया और जिसका उद्देश्य विधवा विवाह करवाना, छुआछूत को मिटाना, नारी की मुक्ति, दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना, महिलाओं के अधिकारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता को आगे बढ़ावा देने के उद्देश्य से महिला सेवा मंडल की स्थापना की। वह अपने इन्हीं अनुभवों और प्रयासों के परिणामस्वरूप एक उत्कृष्ट नारीवादी महिला बन गई।
सावित्रीबाई फुले का निधन…
वर्ष 1897 में महाराष्ट्र के नालासोपारा क्षेत्र में ब्यूबोनिक प्लेग उभरा तो सावित्रीबाई और उनके दत्तक पुत्र यशवंत ने इससे प्रभावित व्यक्तियों के इलाज के लिए एक क्लीनिक बनाया।यह सुविधा पुणे के पश्चिमी उपनगरों में संक्रमण मुक्त वातावरण में बनाई गई थी। सावित्रीबाई ने पांडुरंग बाबाजी गायकवाड़ के बेटे को बचाने के प्रयास में वीरतापूर्वक अपना जीवन बलिदान कर दिया। मुंढवा के बाहर महार बस्ती में प्लेग की चपेट में आने का पता चलने के बाद सावित्रीबाई फुले गायकवाड़ के बेटे के पास गईं और उन्हें अस्पताल ले गईं। सावित्रीबाई फुले इस प्रक्रिया के दौरान प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च 1897 को लगभग रात 9:00 बजे उनका निधन हो गया था। आज हम सावित्रीबाई फुले की 194 वीं जयंती इस दौर में मना रहे हैं जहां सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की कौमी एकता की मिसाल को सांप्रदायिकता वादी ताकते खत्म कर रही है। महंगाई चरम सीमा पर है और आम जनमानस परेशान है। दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यक जोकि बहुसंख्यक लोगों में आते हैं आज भी शिक्षा से वंचित और बेरोजगार हैं। पूंजीवादी लोगों के फायदे के लिए वर्तमान सरकारें तरह-तरह के कानून बना रही हैं। शिक्षा का निजीकरण कर शिक्षकों की संविदा पर भर्तियां की जा रही है। देश में शिक्षा का हाल आज भी बहुत गिरा हुआ है। आए दिन विभिन्न परीक्षाओं के पेपर लीक होना सरकार के मुंह पर तमाचा है। तब बेहद जरूरी हो जाता है कि हमें इस दौर में सावित्रीबाई फुले के जीवन संघर्ष को आम जनता के बीच में ले जाकर उनके आदर्शों पर चलने की अपील करनी चाहिए। शिक्षा की देवी राष्ट्र माता सावित्रीबाई फुले को कोटि-कोटि नमन !!
आलेखक – इं. हर्षवर्धन
बदायूं, उत्तर प्रदेश