बदायूॅं जनमत। आज बतारीख़ 25 जनवरी 2024 मुताबिक 13 रजब यानी यौमे विलादते अमीरूल मोमिनीन हज़रत मौला अली मुश्किल कुशा करमुल्लाह वजहुल करीम के मुबारक मौक़े पर ख़ानक़ाहे सक़लैनिया शराफ़तिया पर फैज़ाने शाह सकलैन फाउंडेशन की जानिब से “जश्ने मौला ए कायनात” का शानदार इनिकाद (आयोजन) किया गया। प्रोग्राम की सरपरस्ती साहिबे सज्जादा हज़रत शाह मोहम्मद गाज़ी मियां सकलैनी उल क़ादरी ने फरमाई। प्रोग्राम का आग़ाज़ बाद नमाज़े इशा शाम 8:30 बजे तिलावते कलामे पाक से हुआ।
मुंबई से तशरीफ़ लाए खुसूसी आलिम हज़रत अल्लामा आबिद सकलैनी साहब ने हज़रत मौला अली की शान बयान करते हुए कहा कि हज़रत मौला अली की ज़ात सिर्फ़ इतनी ही नहीं कि वो मोमिनों के अमीर हैं और दामादे मुस्तफा हैं बल्कि मौला अली की ज़ात वो अज़ीम और बुलंद ज़ात है कि जिसके बारे में हम सबके आक़ा हुज़ूर नबी ए पाक सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “मन कुंतो मौला फा़ हाज़ा अली मौला” मतलब “जिसका मैं मौला उसके अली भी मौला हैं।” इसके अलावा भी हज़रत मौला अली के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “मैं इल्म का शहर हूं और अली उसका दरवाज़ा” इस बात से ये साबित हो गया कि दुनियां को इल्म की खैरात हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम और मौला अली के दर से बटती है।
हज़रत अल्लामा मौलाना महमूद हसन साहब ने अपने खिताब में फरमाया कि हज़रत मौला अली तमाम औलिया के इमाम हैं, आप ही विलायत के सर चश्मा हैं और तमाम सिलसिले हज़रत मौला अली से ही शुरू होते हैं। इसलिए मौला अली के बगैर विलायत की मंज़िलें तय नहीं हो सकती। विलायत की खैरात मौला अली के दर से बटती है और हज़रत मौला अली और आपके बच्चे-बच्चे यानी अहले बैयत की मुहब्बत के बगैर हुज़ूर नबी ए अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम तक रसाई न मुमकिन है।
प्रोग्राम में हाफ़िज़ आमिल सकलैनी, हसीब रौनक सकलैनी, इमरान सकलैनी, मज़हर सकलैनी, सय्यद अरबाज सकलैनी, ज़ीशान सकलैनी वगैरह ने अपनी-अपनी खूबसूरत व दिलकश आवाज़ में नात शरीफ़ व मौला अली की शान में शानदार कलाम पढ़े। निज़ामत के फराइज़ जनाब मुख़्तार सकलैनी और हाफ़िज़ जान मोहम्मद सकलैनी ने अंजाम दी।
इस मुबारक मौक़े पर खानकाह शरीफ़ पर मौला अली के लंगर का भी बड़े पैमाने पर एहतिमाम किया गया, हज़ारों लोगों ने लंगर का खूब लुत्फ लिया। खुसूसी तौर पर हज़रत मुंतखब मियां साहब, सादिकैन सकलैनी, हाफ़िज़ गुलाम गौस सकलैनी, मुख़्तार सकलैनी, हाजी लतीफ़ सकलैनी, हाफ़िज़ नफीस सकलैनी, हाफ़िज़ जाने आलम सकलैनी, मुर्तुज़ा सकलैनी, हमज़ा सकलैनी, फैज़याब सकलैनी, ज़िया सकलैनी आदि मौजूद रहे।
प्रोग्राम देर रात तक चलता रहा और आखिर में फातिहा ख्वानी हुई इसके बाद तमाम अकीदतमंदों को तबर्रुक तकसीम किया गया। प्रोग्राम के आयोजन में शाह सकलैन फाउंडेशन की जानिब से मोहिद्दीन जीलानी सकलैनी, शारिक सकलैनी, सय्यद आतिफ सकलैनी, यावर सकलैनी, हाशिम सकलैनी, नज़ीफ सकलैनी, इकराम सकलैनी, अफ़ज़ल सकलैनी आदि अराकीन ने प्रोग्राम की तैयारियों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।