बदायूँ जनमत। बदायूं क्लब बदायूं द्वारा पिछले छः दिन से चल रहे अमृत महोत्सव सप्ताह के अन्तर्गत राष्ट्रराग कार्यक्रम में छठे दिन आज़ादी और आज का भारत विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन क्लब सभागार में हुआ। गोष्ठी के मुख्य वक्ता शिक्षाविद् डॉ. बैकुण्ठ नाथ शुक्ल रहे। उन्होंने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलितकर एवं पुष्ठ अर्पितकर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। पदाधिकारियों द्वारा उनका पट्का पहनाकर एवं प्रतीक चिन्ह प्रदान कर सम्मान किया गया। तदुपरान्त गोष्ठी प्रारम्भ हुयी। गोष्ठी में डॉ. बैकुण्ठनाथ शुक्ला ने कहा कि प्रत्येक देश की संस्कृति उसके मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक प्रत्येक क्षेत्र में उपयोगी सिद्ध होती है इसलिए संस्कृति का विकास एवं सम्मान होने ने से एक स्वस्थ समाज, वातावरण उत्तपन्न होता है किन्तु भारत की संस्कृतिको इस लोग ही तिरस्कार कर रहे हैं जो कि अग्रिम विकास के लिए घातक हैं। कलाकार आर्येंद्र प्रकाश ने कहा कि इस वर्ष अमृत महोत्सव के अवसर पर सभी भारतवासियों में एक अलग उत्साह नज़र आ रहा है यह उत्साह बना रहना चाहिए क्योंकि हम बहुत जल्द भूल जाते है, चाहें वो शहीदों का बलिदान हो, उनके परिवारों का त्याग हो यह जरुरी है कि हम पुराने इतिहास का ध्यान में रख आगे कार्य करें। राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे एवं वर्तमान में दास कालिज के क्रीड़ा अधिकारी प्रिन्स दीक्षित ने कहा कि आज़ादी किसी दल, सरकार, देश से मुक्ति पास मानान्तर सरकार, दल, का परिवर्तन नहीं है बल्कि वह मानसिकता से भी सम्बन्धित है, हम आज़ाद तो हुये है पर मानसिक गुलाम आज भी हैं। यही कारण है कि अंग्रेज भले ही भारत से चले गये हैं पर वे अपने संस्कार भारत छोड़ गये और हम लगातार उन्हें अपना रहे हैं। अतः हमें आत्मविश्लेषण कर एक मजबूत और स्वनिर्भर राष्ट्र बनाना होगा। शायर शम्स बदायॅंूनी ने कहा, भारत बहुत आगे बढ़ा वैश्विक स्तर पर भी किन्तु उसके खुद के बनाये समाज में नैतिक मूल्यों में भारी गिरावट आयी है। हम लगातार सरकार, व्यवस्था आदि का दोषा रोपित करते रहते हैं किन्तु खुद की गलतियों को नहीं मानते । इस अवसर क्लब के सचिव डॉ. अक्षत अशेष ने कहा कि स्वछन्द होना आज़ादी नहीं है आज़ादी अनेक तत्वों का सामूहिक निष्कर्ष है जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिकता, सांस्कृतिक अनेक प्रकार से सम्बन्ध रखताहै, 75 वर्षों में देश खूब बढ़ा है पर यह भी सच है यहां के लोगों को मानसिक पतन बहुत हुआ है। हम घर में बंटे, मुहल्लों में बटे, नगरों में बंटे, प्रदेश में बंटे, जाति में बटें, धर्मों में बंटे बटते बटते दिलों से ही अलग हो गये। साहित्यकार विभूषण पाठक ने कहा कि आंतरिक चुनौतियों से सुरक्षित रखना होगा । भारतीय गणतंत्र के दीर्धजीवन के लिए सामरिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक मोर्चे पर लम्बे और सततसंघर्ष की जरुरत है।गोष्ठी में नरेश चन्द्र शंखधार, सुमित गुप्ता, सुशील शर्मा, राजीव भारती, प्रशांत दीक्षित, इकबाल असलम, ने विचार व्यक्त किया। संचालन सांस्कृतिक सचिव रविन्द्र मोहन सक्सेना ने किया। सुमित मिश्रा ने आभार व्यक्त किया।