जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा वक्फ़ संशोधन अधिनियम बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

धार्मिक

बदायूॅं जनमत। दरगाह आला हजरत से संचालित संगठन जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा ने क़ाज़ी ए हिंदुस्तान मुफ़्ती मुहम्मद असजद रज़ा खां क़ादरी की सरपरस्ती व सदारत में वक्फ संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। संगठन का मानना है कि यह बिल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है।
क़ाज़ी ए हिंदुस्तान मुफ़्ती मुहम्मद असजद रज़ा खां क़ादरी ने हाल ही में संसद में पास किए गए वक्फ संशोधन बिल का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों और इस्लामी विरासत पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि वक्फ पूरी तरह से धार्मिक मामला है, जो मुस्लिम संपत्तियों की सुरक्षा और उनके धार्मिक उपयोग को सुनिश्चित करता है। उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना और संपत्तियों की नई जांच, संविधान के अनुच्छेद 26 का खुला उल्लंघन है। जो धार्मिक समुदायों को अपने मामले खुद संभालने का अधिकार देता है।
जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सलमान हसन खान (सलमना मिया) ने कहा कि वक्फ़ संपत्तियां मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। यह संशोधन न केवल मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों पर आघात करता है, बल्कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाकर धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करता है। हमारा मानना है कि यह कानून संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा ने सुप्रीम कोर्ट से इस कानून पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मशहूर वकील चार सदस्य पैनल रंजन कुमार दुबे, प्रिया पुरी, तौसीफ खान और मुहम्मद ताहा के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की‌ है।       

 

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