बदायूॅं जनमत। माहे मोहर्रम के दसवें दिन यानी आशूरे के मौके पर दुनियां भर में हज़रत इमाम हुसैन और उनके परिवार की कुर्बानी को याद किया गया। माहे मोहर्रम की सात, नौ और दस तारीख को खास माना जाता है।
कर्बला के मैदान हज़रत इमाम हुसैन और उनके परिवार के भूखे और प्यासे लोगों ने दीन की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। मासूम बच्चों (छः माह के अली असगर) से लेकर नौजवान (हज़रत कासिम, हज़रत अब्बास आदि) तक कुर्बान हो गए और अंततः मोहर्रम की दसवीं को मौला हज़रत इमाम हुसैन की भी शहादत हो गई। इसके बाद भी ज़ालिमों ने उनके लाशों (शव) के साथ बेहूर्मती की और महिलाओं को बेपर्दा कर दिया। यजीद और उसके लश्कर द्वारा किये गए जुल्मों सितम के बावजूद हज़रत अली और हज़रत नबी के घर वालों ने नेकी और इंसानियत की राह को नहीं छोड़ा, इसी बजह से हर साल दुनियां भर के मुसलमान कर्बला की इस घटना को याद करते हैं।
इसी के चलते जनपद बदायूं में भी मोहर्रम का जुलूस निकाला जाता है। या हुसैन की सदाओं के साथ शहर के अलावा कस्बा उसहैत, अलापुर, बिसौली आदि में जुलूस निकाला गया। लोगों ने अपने अपने घरों में मजलिस (जिक्रे हुसैन) कराया। लोगों ने रोज़े रखे व फात्हांख्वानी कराई। जुलूस के दौरान बड़ी संख्या में शरबत, चावल, हलवा आदि की लंगरदारी भी हुई।