क्राई ने हर लड़की की 12वीं तक की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया राष्ट्रव्यापी अभियान

उत्तर प्रदेश

लखनऊ जनमत। हर लड़की की 12वीं तक की शिक्षा सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता को संबोधित करते हुए भारत में अग्रणी बाल अधिकार संस्था क्राई – चाइल्ड राइट्स एंड यू ने ‘पूरी पढ़ाई देश की भलाई’ नाम से अभियान शुरू किया है। देश भर में लाखों लड़कियां आज भी स्कूल से बाहर हैं और कई लड़कियां माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच नहीं पा रही हैं। इस गतिशील सात सप्ताह के राष्ट्रव्यापी पहल का उद्देश्य लड़कियों की शिक्षा के प्रति जन जागरूकता और सामाजिक दृष्टिकोण में क्रांतिकारी बदलाव लाना है। हितधारकों को शामिल करके और चिन्हित कार्यक्षेत्र में अभियान को लागू करके करके क्राई का लक्ष्य शिक्षा की बाधाओं को दूर करना और लड़कियों के लिए एक उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करना है।
उत्तर प्रदेश में यह अभियान राज्य के जनपद बदायूं के साथ-साथ भारत के 20 राज्यों में क्राई के परियोजना क्षेत्रों में सोमवार को शुरू किया गया। इस राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत क्राई और समग्र विकास संस्थान जन जागरूकता रैलियां, हस्ताक्षर अभियान और विभिन्न आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करेंगे।
क्राई की मुख्य कार्यकारी अधिकारी पूजा मारवाहा ने कहा कि बालिकाओं के लिए उच्च माध्यमिक शिक्षा सुनिश्चित करना न केवल उनके सशक्तिकरण के लिए अपरिहार्य है बल्कि यह राष्ट्र के समग्र विकास का भी अनिवार्य अंग है। प्राथमिक शिक्षा से आगे बढ़कर लड़कियों की शैक्षिक यात्रा को सुद्रढ़ करने हेतु सुनियोजित लक्ष्यों और कार्य योजनाओं के साथ अत्यावश्यक है। इस दिशा में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देना होगा जिनमें बालिका शिक्षा के लिए पर्याप्त सार्वजनिक संसाधन वित्तीय प्रोत्साहन उन्नत अधोसंरचना, सामुदायिक सहभागिता एवं बाल विवाह निरोधक कानूनों का कठोर क्रियान्वयन प्रमुख है। परन्तु यह सब कुछ तभी साकार हो सकेगा जब बालिका शिक्षा के प्रति व्यापक जन जागरूकता उत्पन्न हो और समाज में इसकी गहरी अनुगूँज हो।
क्राई की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा ने इस पहल की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि “नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009, 14 वर्ष तक की आयु के भारतीय बच्चों के लिए सार्वभौमिक शिक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था। इस अप्रैल में जब हम इस अधिनियम की 15वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो हम देखते हैं कि कई लड़कियों की अभी भी माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच नहीं है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने 18 वर्ष की आयु तक सार्वभौमिक, नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विस्तार करने का मार्ग प्रशस्त किया जो 2030 तक समान शिक्षा के लिए सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप है। हालांकि नवीनतम UDISE 2021-22 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में केवल पांच में से तीन लड़कियां ही उच्च माध्यमिक स्तर तक पहुंचती हैं। इसका मतलब है कि वर्तमान में केवल 58.2% लड़कियां ही उच्च माध्यमिक शिक्षा में नामांकित हैं।
क्राई द्वारा इसी डेटा बेस का गहन विश्लेषण करने पर और भी चिंताजनक तथ्य प्रकाश में आए हैं । एडजसटेड नेट एनरोलमेंट रेट के आधार पर की गई गणना दर्शाती है कि सम्बंधित आयु वर्ग की प्रत्येक तीन बालिकाओं में से एक (35%) माध्यमिक स्तर पर विद्यालय से बाहर है। इसके अतिरिक्त इसी आयु वर्ग की प्रत्येक आठ छात्राओं में से एक (12.25%) अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ देती है, परिणामस्वरूप वे माध्यमिक शिक्षा पूर्ण करने में असफल रहती हैं।
उत्तर प्रदेश में क्राई के जमीनी अनुभवों से पता चलता है कि सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां, सांस्कृतिक मान्यताएं, लिंग भेदभाव, बाल विवाह, अपर्याप्त स्कूल सुविधाएं, स्कूल दूर होना और सुरक्षा संबंधी चिंताएं लड़कियों की शैक्षिक यात्रा में बाधा डालती हैं जो उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी करने में महत्वपूर्ण बाधाएं पैदा करती हैं। ये बाधाएं उच्च ड्रॉपआउट दर का भी कारण बनती हैं और लड़कियों को बाल श्रम, कम उम्र में विवाह, किशोरावस्था में गर्भधारण, दुर्व्यवहार, शोषण और यहां तक कि बाल तस्करी के प्रति अधिक असुरक्षित बनाती हैं।     

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