एस•शाहिद अली !! चुनाव विधानसभा का हो या लोकसभा का उत्तर प्रदेश में हमेशा दिलचस्प रहता है। खासकर यहां मुस्लिम नेताओं की बात करें तो ये ख़ुदको पूरी क़ौम का रहबर (लीडर) बताकर मलाई खाने का काम करते हैं। क़ौम की जनसंख्या गिनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं और बात जब खुद पर गुज़रती है तो क़ौम क़ौम का गाना गाते हैं। फिर जगह जगह महा पंचायतों और मुशावरत कांफ्रेंस का आयोजन किया जाता है।
लेकिन, यही मुस्लिम नेता जो खुदको क़ौम का रहनुमा बताते हैं अपने ज़ाति फायदे के लिए क़ौम को किसी भी हद तक गढ्ढे में गाढ़ने का काम करते हैं। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खां की बात करें तो हाल ही में उन्होंने मुरादाबाद लोकसभा सीट (मुस्लिम बाहुल्य) से मुस्लिम नेता और वर्तमान सांसद एसटी हसन का टिकट कटवाकर रूचि वीरा को सपा का प्रत्याशी बनवा दिया। चर्चा है कि रूचि वीरा आज़म खां की बेहद करीबी हैं। मगर इतनी ही करीबी हैं तो उन्हें रामपुर से चुनाव क्यों नहीं लड़वाया गया.? क्यों एक मुस्लिम सांसद का टिकट कटवाया.? हालांकि आजम खां की इस हरकत से मुरादाबाद की जनता में काफी रोष है। स्थानीय लोगों ने अखिलेश, आजम और रूचि वीरा के पुतले तक जला डाले।
वहीं अगर पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम शेरवानी की बात करें तो यह भी किसी से कम नहीं हैं। हाल ही में समाजवादी पार्टी द्वारा इन्हें राज्यसभा का प्रत्याशी न बनाए जाने पर मुसलमान-मुसलमान का रोना रोकर पद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया। पार्टी पर दबाव बनाने के लिए महा पंचायत का आयोजन किया। हालांकि पंचायत काफी हद तक फ्लॉप रही। वहीं वर्ष 2017 में जब सपा और कांग्रेस यूपी में गठबंधन से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे तब, बदायूं जनपद में दातागंज विधानसभा की मात्र एक सीट कांग्रेस को मिली थी। जिस पर हक़ एक मुस्लिम नेता आतिफ खां का था जो वर्षों से कांग्रेस में रहकर दातागंज विधानसभा में जमीनी स्तर पर अपनी सियासी ज़मीन तैयार कर रहे थे। लेकिन, सलीम शेरवानी ने एक ही रात में सपा के पूर्व विधायक प्रेमपाल सिंह यादव को कांग्रेस में शामिल कराकर उन्हें टिकट दिलवा दिया। हालांकि शेरवानी के इस प्रत्याशी की करारी हार हुई थी और शेरवानी को मुंह की खानी पड़ी।
अब सवाल उठता है कि जब मुस्लिम क़ौम के यही रहबर मुस्लिम नेताओं के साथ गद्दारी करते हैं तब इन्हें क़ौम याद नहीं आती.?? ऐसे लोग सिर्फ खुदको मुसलमानों का नेता मानते हैं.?? मुस्लिम क़ौम अब इनकी गंदी और ओछी राजनीति को समझ चुकी है। अब इनकी ठेकेदारी से नहीं, खुदकी समझदारी से फैसला होगा। 
